Evolving Perspectives: The Changing Landscape Of Literature And Its Modern Interpretations

Authors

  • Dr. Meena Sharma

DOI:

https://doi.org/10.53555/sfs.v8i1.3538

Abstract

प्रत्येक रचना एक प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया हमे ंअपन ेसमय की प्रबल भावनाओ ंके रूबरूखड़ा कर दतेी है, जो किसी को क्षमा नहीं करती।
यह प्रश्न उनतमाम लोगो ंके लिए, जो कला के बगैर और जो अभिव्यक्ति कला करती है उसकेबगैर जिन्दा नहीं रह सकते सिर्पफ यह जाननेका है कि कैसे इतनी सारी विचारधराओंकी प्रतिबंध् शक्ति की मौजूदगी मंे सजृन की आश्चर्यजनक आज़ादी मुमकिन है।
जब हम साहित्य और सस्ंकृति के बदलत ेपरिवेश और परिप्रेक्ष्य मे ंसोच मे ंसोच एवं मूल्यों स ेउत्पÂ समस्याओ ंकी चुनौती को स्वीकार करनेके बजाय पिफर वही पुरानेसमाधन प्रस्तुत करते हैं तो इसका अभिप्राय यह है कि हम अपनी ऊर्जा एवं ऊष्मा खोचुके हैं। यह स्थितिउत्तर-आध्ुनिकतावाद के विनाश विमर्श को सदृढृ ़करती है जिसमेंप्रत्येक वस्तु एवं विचार यहां तक कि भविष्य के अवसान की भी घोषणा होचुकी है।जब रोमांटिकवादी कवियो ंन ेअपन ेस्वच्छंदतावादी प्रवृत्ति मे ंलिखना आरम्भ किया तोआध्ुनिकता के अनयुायियों मे ंयह प्रवृत्तिर उभरकर सामन ेआई और साहित्यिकआध्ुिनकतावाद जो सजृन और समालोचना था महत्वपूर्ण विमर्श बन गया। इस सन्दर्भ मेंइरविंग होऊ न ेस्पष्टलिखा है- फ्गत एक सौ वर्षों मे ंहमारे पास एक विशेष प्रकार कासाहित्य रहा है। हम इसे पहचान देते हैं। जबकि समकालीनता का सबंध्ीवतर्मान समय स ेहै, आध्ुनिकता का सवंेदन तथा स्टाइल से है। जबकि समकालीन एक निपखर््ा संदर्भका शब्द है। आध्ुनिकता सकारात्मक सदंर्भ और निर्माण का शब्द है। आध्ुनिकता अबसमाप्ति के निकट नज़र आती है। यद्यपि हम यह निश्चित तौर पर की प्रकृति दख्ेात ेहुएआध्ुनिकता
युग कभी खत्म नहीं हो सकता। ;लिटरेरी मॉडनिजर््म 1967द्ध वहीं माक्सर्वादन ेव्यक्ति को भौतिक ऐतिहासिक अस्त्विवाद का निष्क्रिय अंग बनादिया वहाँ प्रफायड नेउसे शैशवकाल के अनभ्ुावों, अवचेतन तथा यौन प्रवृत्ति का जन्मजात दास बना दिया। एक की दुिनया बाहर की थी।दसूरे के भीतर की। लेकिन दोनों ही न ेमनष्ुय कीइच्छाशक्ति के दायरे को सीमित कर दिया। हालांकि अस्तित्ववाद ने यह कहकर कि
फ्मैन इज़ कॉमिटिड टू बी प्रफीय् नियतिवाद का भ्रम ज़रूर के चयन और कर्म की स्वतंत्राता की एक बार पिफर केन्द ्रमे ंला खडा कर दियाहै। अस्तित्ववाद अस्तित्व केचयन की प्रक्रिया तक पहुंचता है और पिफर चमन से स्वतंत्राता के विचार एवं कर्म तक,प्रत्येक मनष्ुय स्वतंत्रा होनेऔर रहन ेपर विवश है, यही उसके अस्तित्व और अनुभव का स्त्रोत है। क्योंिक व्यक्ति अपने मूल्यों और मंजिल का चयन तथा निर्धरण स्वयंकरताहै और इसका जो भी अंजाम हो उसकी सज़ा भुगतन ेके लिए उसे तैयार रहना चाहिए।

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Published

2021-01-24

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Articles